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आर्य और काली छड़ी का रहस्य-36

    

    अध्याय-12
    काली छड़ी का रहस्य
    भाग-3

    ★★★
    
    आचार्य वर्धन शून्य विहीन हो चुके थे। जबकि बाकी सब उनके आसपास खड़े थे। आचार्य वर्धन शुन्य विहींन होने के बाद खुद में खोते हुए सभी को काली छड़ी की कोई बात बताने वाले थे।
    
    “दरअसल..” आचार्य वर्धन ने बोलना शुरू किया “यह बात तो हर कोई जानता है काली छड़ी को शैतानी दुनिया में बनाया गया था। उसे खुद शैतान ने हीं बनाया था। उस शैतान ने जिसे हम शैतान के शहंशाह भी कहते हैं। शहंशाह ने काली छड़ को बनाते वक्त कुछ ऐसे मंत्रों का इस्तेमाल किया था जिनका तोड़ उनके पास भी नहीं था। वह मंत्र खतरनाक थे और उसके इस्तेमाल से उनका खुद का खात्मा भी हो सकता था। ‌ ऐसे में उन्हें इस बात का डर लगा रहा कि भविष्य में अगर कोई एक छड़ का इस्तेमाल उन पर ही कर देता है तो क्या होगा। इस तरह की परिस्थितियों में उनके बचने की संभावना बिल्कुल भी नहीं रहेगी। शैतान ऐसा नहीं चाहते थे। ‌वह अपनी ही छड़ी से खुद को मरता हुआ नहीं देखना चाहते थे। इसलिए उन्होंने एक चक्करव्युह बनाया। एक ऐसा चक्करव्युह जिसमें शैतानी छड़ को इस्तेमाल करने वाले धारक को उसमें फंसना ही होगा। उन्होंने छड़ की कार्यप्रणाली में बदलाव कर उसे इस प्रकार का बना दिया की जो भी धारक उसका इस्तेमाल करेगा उसे काली छड़ से सौदा करना पड़ेगा। एक ऐसा सौदा जिसमें काली छड़ सौदे के बदले में धारक की उस इच्छा को पूरी करेगी जिसके लिए उसका इस्तेमाल किया जा रहा है। यहां उन्होंने इस बात के शर्त रख दी की कोई भी काली छड़ से उन को मारने की इच्छा नहीं मांग सकता, बाकी इसके अलावा सब इच्छाएं मांगी जा सकती थी। यह शैतान के शहंशाह की एक खतरनाक चालबाजी का उदाहरण था, जिसमें उनकी छड़ कभी भी उनके लिए मौत की जिम्मेदार नहीं बनने वाली थी। वही उसे इस्तेमाल करने वाले धारक के सौदे का मामला धारक और काली छड़ के बीच तक ही सीमित था। कोई सौदे से ना मुकरे इसलिए काली छड़ी पर अभिशाप मंत्रों का इस्तेमाल किया गया। जिसमें किसी धारक के सौदा ना पूरा करने पर काली छड़ के अभीशापित मंतर उसे अपना गुलाम बना सकते थे और जबरदस्ती उससे सौदा पूरा करवा सकते थे। इससे धारक ना चाहते हुए भी खुद के बस में नहीं रहता।”
    
    हिना इस बात को समझते हुए बोली “मतलब इसे इस तरह से लिया जा सकता है कि जो भी धारक उनकी छड़ का इस्तेमाल करेगा वह इस्तेमाल से पहले किसी तरह का सौदा करेगा। शैतानी छड़ से सौदा। तो आप तो अभी इस छड़ के इस्तेमाल कर हम पर काफी सारे हमले कर रहे थे, तो इसका मतलब आपने हर बार सौदा किया..!”
    
    “नहीं..” आचार्य वर्धन हिना की तरफ देखते हुए बोले “हमला करना और इस्तेमाल करने में फर्क होता है। मैंने तुम लोगों पर हमला किया, जिसमें मेरे मंत्र इस्तेमाल हुए और छड़ी ने मेरे मंत्रों को बस एक दिशा दी। छड़ को इस्तेमाल करने का मतलब कुछ ऐसा करना जिसमें खुद छड़ को आगे आकर प्रतिनिधित्व करना पड़े।”
    
    आचार्य ज्ञरक कुछ याद करने लगे। उन्हें आज से 12 साल पहले कि वह बात याद आई जब शैतान‌ की काली छड़ी का इस्तेमाल किया गया था। उसी इस्तेमाल से आश्रम के बाहर का सुरक्षा चक्कर बना था। वह उसे याद करते हुए बोले “मुझे याद है आपने आज से 12 साल पहले इसका इस्तेमाल किया था, और इसके इस्तेमाल से सुरक्षा चक्कर बनाया था। क्या तब आपने कोई सौदा किया था?”
    
    “हां।” आचार्य वर्धन ने कहा “मैंने सौदा किया था। उस सोदें में मैंने शैतानी छड़ी के इस्तेमाल के बदले आश्रम के 10 लोगों की बलिदानी दी थी।”
    
    यह सुनकर आचार्य ज्ञरक पूरी तरह से अपने होश खो गए। उन्हें खुद पर विश्वास नहीं हो रहा था। 12 साल पहले जब अंधेरी परछाइयों ने किले पर हमला किया था तब काफी लोगों की जान गई थी। उस वक्त उन्हें इस बात का बिल्कुल अंदाजा नहीं लगा कि उनमें से 10 लोगों की जान अचार्य वर्धन के शैतानी सौदे की वजह से गई।
    
    आचार्य वर्धन रोते हुए बोले “मेरे पास अपने लोगों की जान बचाने के लिए इसके अलावा और कोई रास्ता नहीं था। उस वक्त मेरे पास और कोई रास्ता नहीं था। अंधेरी परछाइयों की संख्या बहुत ज्यादा थी और हमारी ताकत उनके सामने कम पड़ रही थी। मुझे मजबूरन काली छड़ का इस्तेमाल करना पड़ा जिसके इस्तेमाल से पहले उसने मुझसे सौदे के बदले में कुछ देने के लिए कहा। मैंने हर एक चीज की पेशकश रखी मगर काली छड़ ने मुझसे अपने 10 लोगों का बलिदान ही मांगा। मैं चाह कर भी इस चक्रव्यू से बाहर नहीं निकल सका, और काली छड़ को इस्तेमाल करने से पहले मुझे 10 लोगों की बलिदानी देनी पड़ेगी।” 
    
    आचार्य ज्ञरक अपनी जगह से खड़े हुए और उन्होंने अपने हाथ को मुक्के में बना कर जोर से दीवार पर मारा। “शैतान के शहंशाह को ऐसा नहीं करना चाहिए था। वह भला..., आखिर क्यों उसने छड़ को इस तरह का बनाया। आखिर क्यों उसके दिल में दया नाम की कोई चीज नहीं।”
    
    आचार्य वर्धन बोले “काली छड़ शैतान के द्वारा शैतान के लिए बनी है और वह किसी भी परिस्थिति में अपने शैतानी पन को नहीं छोड़ सकती। इसीलिए शैतान ने दूसरे लोगों के इस्तेमाल के लिए उसे आजाद छोड़ दिया मगर अपने चक्करव्युह वाले इस बड़े प्रतिबधता के साथ। एक ऐसी प्रतिबधता जिसमें काली छड़ भी सूझबूझ से सौदा करती है।”
    
    “यह सौदा होता कैसे हैं?” आयुध ने सवाल पूछा “आमने सामने?”
    
    “मानसिक विचारों से..” आचार्य वर्धन ने कुछ और सोचने से पहले ही आयुध को जवाब दे दिया। “मानसिक विचारों के जरिए काली छड़ को सौदे की पेशकश की जाती है।”
    
    अचार्य ज्ञरक ने अपने हाथ को दीवार से हटाया और वापस आचार्य वर्धन के पास आ गए। वह घुटनों के बल उनके पास बैठे और उनसे कहा “हम काली छड़ी के रहस्य को समझ गए। वह खुद के इस्तेमाल से पहले इस्तेमाल करने वाले से एक सौदा करती है, जिसमें उसके साथ शैतान की मौत का सौदा नहीं किया जा सकता। इसे तरह के चरण को शैतान ने इसलिए बनाया ताकि कोई भी उसकी छड़ का इस्तेमाल कर उसे ना मार सके।”‌ इतना कहने के बाद वह कुछ देर खामोश रहे और फिर बोले “मगर अब आपने ऐसा क्या किया है जिसकी वजह से आप खुद को मारने की बात कर रहे थे। क्या आपने शैतान की इस काली छड़ से फिर कोई सौदा किया है..? अगर हां तो किस चीज के लिए... और आपने सौदे के बदले में इस काली छड़ से किस चीज की पेशकश की है?” वह थोड़े भावुक मगर जोरदार आवाज में बोले “बताइए मुझे..? मुझे इस सवाल का जवाब जानना है। मुझे जानना है कि इस बार आपने... किया तो किया क्या है?”
    
    “इस बार मुझे अंधेरी परछाइयों को आजाद करवाने के लिए बड़ी शक्ति की जरूरत थी। दीवार के जादू को तोड़ना सिर्फ काली छड़ी के इस्तेमाल से ही मुमकिन था। और मैंने इस बार सोदे में काली छड़ को उनके साथियों को सौंपने की पेशकश की।”
    
    “नहीं नहीं नहीं” आचार्य ज्ञरक खुद का ही माथा पीटने लगे “यह आखिर आपने किस तरह का सौदा कर लिया इस शैतान की काली छड़ से। क्या आपको सोदे के लिए कुछ और नहीं मिला था... यह तो... यह तो बस अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने वाली बात है।”
    
    “मैं जानता हूं।” आचार्य वर्धन ने कहा “लेकिन मैं तो आश्रम की भलाई के लिए यही करना चाहता था। दीवार के पीछे अंधेरी परछाइयों को आजाद करने के बाद छड़ भी उन्हें सौंप देने वाला था। मगर इसके लिए काली छड़ से सौदे वाली रस्म पूरी करनी थी। मैंने सोचा और उसे देने की बात कह दी। अब मुझे क्या पता था मैं अपने सोदे से मुकर जाऊंगा, ऐसे हालात पैदा हो जाएंगे जिसमें भविष्यवाणी वाला लड़का हमारे सामने ही आकर खड़ा हो जाएगा। मैंने इस बारे में बिल्कुल भी कल्पना नहीं की थी, और इसकी वजह से मैं इसके दुष्परिणामों को लेकर भी गंभीर नहीं हुआ।”
    
    आचार्य ज्ञरक खड़े होकर तेज तेज इधर-उधर चहल कदमी करने लगे। उनके चेहरे पर परेशानी थी। ‌गुस्सा था। वह भावुक थे और उदास भी। एक साथ कई सारे भाव उनके चेहरे पर आ रहे थे। “आपने एक ऐसे विकल्प का चुनाव किया है जिसमें अगर आप बदल भी जाते हैं और अपने इरादे भी छोड़ देते हैं तब भी आपको काली छड़ ऐसा करने नहीं देगी। आप पर उसके अभिशापित मंत्र लागू होंगे और वह आपको यह करने के लिए मजबूर कर देंगे। मतलब आपको अंधेरी परछाइयों को आजाद करने के लिए मजबूर कर देगी, और खुद को उन्हें सौंप देने के लिए भी।”
    
    आचार्य वर्धन निराशा में बोले “इसीलिए तो मैंने कहा है मुझे मार दो। बस मेरी मौत ही एकमात्र ऐसा रास्ता है जिससे इन सभी परिस्थितियों से बाहर निकला जा सके। मेरी मौत ही शैतान के इस चक्रव्यू का हल है। अगर शैतान की काली छड़ को इस्तेमाल करने वाला धारक ही जिंदा नहीं रहेगा तो उसके कोई भी नियम और कायदे कानून लागू नहीं होते। अभीशापित मंत्र भी लागू नहीं होगा। इस आश्रम की जान तो आपके और भविष्यवाणी वाले लड़के के हाथ में है ही। वही वह शैतान का काल भी है। आने वाले समय में वह सब संभाल लेगा। अगर अंधेरी परछाइयां दीवार के पीछे से आजाद नहीं होगी और काली छड़ उनके हाथ नहीं लगेगी तो उनकी ताकत हमेशा कमजोर रहेगी। कमजोर ताकत में शैतान और भी जल्दी मौत के मुंह में चला जाएगा।”
    
    हिना और आयुध की आंखों से आंसू आ गए। वह आचार्य वर्धन की बिल्कुल लाचार कर देने वाली और बेबस परिस्थिति पर रो रहे थे। हालात ऐसे हो गए थे की उनके पास अचार्य वर्धन की मौत के अलावा अब कोई भी रास्ता नहीं बचा था। हिना ने रोते रोते अपना सर आयुध के कंधे पर रख दिया। वही आयुध ने भी हिना के सर को थपथपाया और उसे संभलने के लिए कहा।
    
    आचार्य ज्ञरक चलते हुए थोड़ा दूर चले गए। वहीं आर्य ने भी अपनी जगह बदली और उनके पास चला गया। वह अब तक शांत रहकर सब की बातें सुन रहा था। उसने वहां अचार्य ज्ञरक से कहा “क्या अब सच में हमारे पास कोई रास्ता नहीं बचा है? क्या ऐसा कोई रास्ता नहीं जिसमें आचार्य वर्धन की जान भी बचा ली जाए और इन अंधेरी परछाइयों को भी ना आजाद होने दिया जाए।”
    
    आचार्य ज्ञरक निराश स्वर में बोलें “काली छड़ के सौदे में बदलाव करना संभव नहीं। उन्होंने खुद को ऐसे माया जाल में फंसा लिया है जिसमें रास्ते नाम की कोई गुंजाइश नहीं।”

    “लेकिन ऐसा कैसे हो सकता है...” आर्य तेजी से आचार्य ज्ञरक के सामने आया “इस ब्रम्हांड में लगभग हर एक समस्या का हल है। कोई चाहे कितना भी ताकतवर क्यों ना हो जाए, तब भी उसका अंत निश्चित है। ठीक उसी तरह से कोई समस्या चाहे कितनी भी बड़ी क्यों ना हो.... उसका कोई ना कोई हल जरूर मौजूद रहता है। यहां भी इस समस्या का कोई ना कोई हल तो होगा ही। कुछ तो ऐसा होगा जिसमें शैतान की काली छड़ के इस सौदे को टाला जा सके। कोई कमी या कोई निवारण। कुछ ऐसा जिसमें शैतान ने भी कोई गलती कर दी हो। मतलब चाहे वह खुद को कितना भी सुरक्षित क्यों ना कर ले या इस काली छड़ पर कितने भी प्रतिबंध क्यों ना लगा ले... कहीं तो उसने कोई चूक की होगी। कहीं तो उसने कोई कमी रखी होगी। कोई ऐसी चूक या कोई ऐसी कमी... जिसका इस्तेमाल कर हम अचार्य वर्धन को बचा सके।” आर्य रोता हुआ दिख तो नहीं रहा था, मगर उसके शब्दों में भारीपन जरूर था। उसकी आंखों में हल्की नमी भी थी। ऐसा एहसास हो रहा था कि वह कुछ ही देर में खुद ब खुद रो देगा। यह एक अत्यंत ही भावुक दृश्य था। एक ऐसा भावुक दृश्य जो सभी को विचारहीन कर रहा था। बेचारे अचार्य वर्धन....!! 
    
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